श्रीनगर की ठंडी पतझड़ की सुबह में कीर्तन की धुनें हवा में घुल रही थीं और लंगर की खुशबू पुरानी गलियों में फैल चुकी थी। अवसर था गुरपुरब — गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व। लेकिन इस बार का गुरपुरब सिर्फ आध्यात्मिक उत्सव नहीं था। भीड़ के बीच तीन नेता साथ-साथ चल रहे थे — पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला।
उनकी मौजूदगी ने इस धार्मिक जुलूस को एक व्यापक, राष्ट्रीय संदर्भ दे दिया — यह याद दिलाते हुए कि आस्था और राजनीति कई बार बहुत सूक्ष्म तरीकों से एक-दूसरे को छूते हैं।
श्रीनगर का नगर कीर्तन: कश्मीर की सांझी संस्कृति की झलक
कश्मीरी सिख समुदाय संख्या में छोटा है, लेकिन सांस्कृतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण। चट्टी पदशाही गुरुद्वारे से शुरू हुआ नगर कीर्तन परंपरागत तरीके से पांव-पांव आगे बढ़ा। पांच प्यारों के नेतृत्व में जुलूस गुजरता गया और राह में सभी—सिख, मुस्लिम, हिंदू, पर्यटक—खुले दिल से लंगर ग्रहण करते रहे।
इस माहौल ने उस दुर्लभ सद्भाव को दिखाया, जिसे आज की राजनीतिक बहसें अक्सर ढक देती हैं।
धार्मिक उपस्थिति से आगे का संदेश
मान-केजरीवाल-अबदुल्ला की संयुक्त उपस्थिति केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं थी। दृश्य ही बहुत कुछ कह रहा था।
भगवंत मान के लिए यह अवसर भावनात्मक था—एक सिख नेता होने के नाते उन्होंने पंजाब और कश्मीर के सिखों के बीच के रिश्ते को रेखांकित किया।
केजरीवाल की मौजूदगी ने दिखाया कि AAP कश्मीर में अपनी छवि को समावेशी रूप में गढ़ना चाहती है।
उमर अब्दुल्ला की भागीदारी ने इस कार्यक्रम को स्थानीय सांस्कृतिक जड़ें प्रदान कीं।
सिख परंपरा और कश्मीर — एक पुराना रिश्ता
सिख इतिहास में कश्मीर का स्थान विशेष रहा है। गुरु नानक देव जी के 16वीं शताब्दी के यात्रापथ से लेकर गुरु हरगोबिंद साहिब की यादें तक, कश्मीर सिख विरासत का हिस्सा रहा है।
कश्मीर के सिख समुदाय ने दशकों के उतार-चढ़ाव के बावजूद सेवा और सौहार्द की परंपरा जारी रखी है। यह जुलूस उसी विरासत का प्रतीक था।
जनता ने क्या देखा — और क्या समझा
जैसे ही तीनों नेता एक साथ दिखे, चर्चा शुरू हो गई—क्या यह 2026 के राजनीतिक समीकरणों की झलक है?
कुछ लोगों ने इसे संभावित राजनीतिक गठबंधनों का संकेत कहा। कुछ ने इसे सौहार्द का संदेश माना।
लेकिन आम जनता की प्रतिक्रिया गर्मजोशी भरी थी। सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल हो गईं और लोग इस दृश्य को भारत की विविधता का सुंदर क्षण बता रहे थे।
आस्था, सादगी और राजनीति की महीन रेखा
भारत में धार्मिक कार्यक्रम अक्सर राजनीतिक मंच बन जाते हैं। लेकिन इस बार अलग था—न भाषण, न प्रचार। सिर्फ उपस्थिति।
मान ने कीर्तन में कुछ देर स्वर मिलाए, केजरीवाल ने प्रसाद बांटा, और अब्दुल्ला सिख बुजुर्गों से सहजता से बात करते दिखे। इन छोटे-छोटे पलों ने इस कार्यक्रम को बेहद वास्तविक बना दिया।
गुरु नानक की सीख और आज का भारत
गुरपुरब हमेशा गुरु नानक साहिब की शिक्षाओं का स्मरण कराता है—समानता, सादगी, करुणा और सच्चाई। आज के भारत में, जहां ध्रुवीकरण अक्सर हावी रहता है, ये विचार और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
कश्मीर की बदलती तस्वीर
अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर कई बदलावों से गुजर रहा है। ऐसे समय में शांतिपूर्ण धार्मिक जुलूस का यह दृश्य एक अलग कहानी कहता है—कश्मीर सिर्फ तनाव का केंद्र नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत का घर भी है।
स्थानीय संगठनों, स्वयंसेवकों, प्रशासन और धार्मिक समुदाय के तालमेल ने इस कार्यक्रम को सहज और शांतिपूर्ण बनाया।
सांस्कृतिक जुड़ाव का नया रूप
भारत में नेता धार्मिक आयोजनों में जाते हैं, लेकिन इस कार्यक्रम का स्वरूप बिल्कुल सूक्ष्म और वास्तविक था।
न चुनावी पोस्टर, न नारों की भीड़ — बस साथ चलना।
युवा मतदाता आज सच्चाई और आत्मीयता को भाषणों से ज्यादा महत्व देते हैं। इसीलिए ऐसे पल प्रभाव छोड़ते हैं।
सदियों पुरानी बहुरंगी परंपरा वाला श्रीनगर
श्रीनगर में शैव, सूफी, बौद्ध और सिख परंपराओं का गहरा प्रभाव रहा है। गुरुद्वारे और मंदिर से लेकर खानकाहों तक, शहर की गलियों में यह इतिहास बसता है।
तीनों नेताओं की उपस्थिति इस पुरानी सांस्कृतिक धारा का सम्मान भी थी।
पूरा दिन — एक शांत यात्रा जैसा
सुबह चट्टी पदशाही से लेकर अमीरा कदल तक, जुलूस पूरे शहर से होकर निकला।
रास्ते में बच्चों ने शबद गाए, महिलाओं ने कढ़ा प्रसाद बांटा, और हजारों लोगों ने लंगर में भोजन किया।
यह सिर्फ धार्मिक यात्रा नहीं थी—यह एक साझा अनुभव था।
ऑनलाइन प्रतिक्रिया और राष्ट्रीय चर्चा
कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल थीं।
एकता के हैशटैग पूरे देश में ट्रेंड करने लगे।
अखबारों ने भी इसे सकारात्मक रूप में देखा—राजनीति के बिना, सिर्फ सहभागिता।
कुछ आलोचकों ने इसे चुनावों से जोड़ने की कोशिश की, लेकिन ज्यादातर ने माना कि अगर ऐसे पल सौहार्द बढ़ाते हैं, तो यह स्वागतयोग्य है।
कश्मीर की नई कहानी: संस्कृति के जरिए संवाद
लंबे समय से कश्मीर की छवि संघर्ष केंद्रित रही है। ऐसे सांस्कृतिक आयोजन एक अलग कहानी सुनाते हैं — शांति, पहचान और साझा विरासत की।
मान और केजरीवाल का कश्मीर में यह सांस्कृतिक जुड़ाव एक नरम कूटनीति (cultural diplomacy) की तरह है, जो दिलों तक पहुंचता है।
उमर अब्दुल्ला की उपस्थिति ने इसे स्थानीय स्वीकृति का भाव दिया।
निष्कर्ष: राजनीति से परे, साथ चलने की शक्ति
दिन के अंत में सबसे बड़ी सीख यही थी — कभी-कभी साथ चलना सबसे प्रभावी संदेश होता है।
भगवंत मान, अरविंद केजरीवाल और उमर अब्दुल्ला ने सिर्फ एक धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लिया, बल्कि भारत की उस परत को उजागर किया जो आज भी विविधता और भाईचारे पर टिकी है।
गुरु नानक साहिब का संदेश — करुणा, समानता और मानवता — उस दिन कश्मीर की वादियों में और गूंज उठा।

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